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शुक्र ग्रह

नवग्रह शान्ति विधान | Duration : 1 Day

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शुक्र ग्रह

Description

About Puja :-

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ग्रहों का प्रभाव अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है, जो उसके जन्म के समय ग्रहदशा और कर्मों के आधार पर निर्धारित होता है। इन ग्रहों के प्रभाव से व्यक्ति की जीवन यात्रा का मार्गदर्शन होता है। ग्रहों के प्रभाव के साथ-साथ पूर्वजन्म के कर्म भी इस जन्म में फलित होते हैं, और इन कर्मों का प्रभाव जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पड़ता है। जैसे अंधकार में दीपक का प्रकाश अंधेरे को समाप्त करता है, वैसे ही ग्रहों के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन की दिशा तय होती है।

नवग्रहों में शुक्र ग्रह का एक प्रमुख स्थान है। वह दानवों के गुरु और योग के आचार्य माने जाते हैं। शुक्र, भृगु गोत्र के ब्राह्मण हैं और भोजकट देश के स्वामी हैं। इनका वर्ण श्वेत होता है और ये कमल के फूल पर विराजमान रहते हैं। इनके चार हाथ होते हैं, जिनमें क्रमशः रुद्राक्ष, वरमुद्रा, शिला और दण्ड होते हैं। ये श्वेत वस्त्र पहनते हैं और इनके अधिदेवता इन्द्र तथा प्रत्यधिदेवता चन्द्रमा हैं।

महाभारत के आदिपर्व में उल्लेखित है कि शुक्राचार्य ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, जिससे उन्हें मृतसञ्जीवनी विद्या प्राप्त हुई। इस विद्या के बल पर उन्होंने युद्ध के दौरान मरे हुए दानवों को जीवित कर दिया था। मत्स्यपुराण के अनुसार, शुक्राचार्य ने असुरों के कल्याण के लिए भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया था कि वे युद्ध में देवताओं को भी पराजित कर सकेंगे। उन्होंने भगवान शिव से यह भी वरदान लिया कि कोई भी उन्हें पराजित नहीं कर पाएगा और वे धन के अध्यक्ष भी बनेंगे।

शुक्र ग्रह वृष और तुला राशि के स्वामी माने जाते हैं, और इनकी महादशा 20 वर्ष की होती है। शुक्राचार्य का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में विशेष रूप से धन, समृद्धि, वैवाहिक जीवन, और सुख-शांति के क्षेत्रों में देखा जाता है।

Benefits

शुक्रग्रह के मन्त्रजप का माहात्म्य

शुक्र ग्रह को भौतिक सुख, ऐश्वर्य, प्रेम और संबंधों का प्रतीक माना गया है। यह व्यक्ति के जीवन में सुख-संपत्ति, प्रेम संबंधों, और पारिवारिक शांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि किसी जातक की कुंडली में शुक्र ग्रह अशुभ स्थिति में हो, जैसे कि वह प्रतिकूल ग्रहों के साथ युति या दृष्टि में हो, तो जातक को जीवन में कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन शुक्र ग्रह के उपासना से इन समस्याओं से निजात पाई जा सकती है।

शुक्र ग्रह के मंत्रजप और अनुष्ठान से व्यक्ति के जीवन में शांति और संतुलन आता है। यदि किसी का वैवाहिक जीवन तनावपूर्ण है, झगड़ों से भरा हुआ है या विवाह में देरी हो रही है, तो शुक्र के मन्त्रजप से इन समस्याओं का समाधान संभव है। विशेष रूप से वैवाहिक जीवन के मधुरता के लिए शुक्र का पूजन और अनुष्ठान बहुत प्रभावी साबित होता है।

विवाहित जीवन में संतान सुख की प्राप्ति के लिए भी शुक्र पूजन अत्यधिक लाभकारी होता है। यदि किसी व्यक्ति को संतानोत्पत्ति में बाधा आ रही है, तो शुक्र अनुष्ठान से निश्चित रूप से लाभ होता है। इसके अलावा, महिलाओं को मासिक धर्म संबंधित समस्याओं या गुप्तांग संबंधित रोगों का सामना हो, तो ऐसे मामलों में भी शुक्र का पूजन एवं मंत्रजप अत्यधिक लाभकारी साबित हो सकता है।

शुक्र ग्रह की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि शुक्र अनुष्ठान वैदिक विधि से कराया जाए, ताकि ग्रह की शुभता और अनुकूलता प्राप्त हो सके। शुक्र के मंत्रजप से व्यक्ति जीवन में सकारात्मक बदलाव देख सकता है, और उसके समस्त कष्टों का निवारण हो सकता है।

शुक्र ग्रह की अनुकूलता के लिए गौ पूजा, हीरा धारण और शुक्रवार के दिन विशेष व्रत भी किए जा सकते हैं। शास्त्रों में शुक्र के मंत्र की जप संख्या 16,000 बताई गई है, जो विशेष रूप से शुभ मुहूर्त में शास्त्रीय विधि से होना चाहिए। इस अनुष्ठान में चावल, सफेद चन्दन, घी, सफेद वस्त्र, चीनी, गौ, चांदी इत्यादि दान किए जाते हैं।

मंत्र जप करने या अनुष्ठान कराने से पूर्व कुंडली विशेषज्ञ से परामर्श जरूर करें।

Process

शुक्रग्रह के मन्त्रजप में होने वाले प्रयोग या विधि :-

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवंपूजन 
  13. रक्षाविधान,  प्रधान देवता पूजन
  14. मन्त्रजप विधान
  15. विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
  16. ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
  17. पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
  18. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  19. घृताहुति, मूलमन्त्र आहुतिचरुहोम
  20. भूरादि नौ आहुतिस्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
  21. संस्रवप्राश, मार्जन, पूर्णपात्र दान
  22. प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
  23. पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन

Puja Samagri

श्रद्धा के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-

  • रोली, कलावा    
  • सिन्दूर, लवङ्ग 
  • इलाइची, सुपारी 
  • हल्दी, अबीर 
  • गुलाल, अभ्रक 
  • गङ्गाजल, गुलाबजल 
  • इत्र, शहद 
  • धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई 
  • यज्ञोपवीत, पीला सरसों 
  • देशी घी, कपूर 
  • माचिस, जौ 
  • दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा 
  • सफेद चन्दन, लाल चन्दन 
  • अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला 
  • चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का 
  • सप्तमृत्तिका 
  • सप्तधान्य, सर्वोषधि 
  • पञ्चरत्न, मिश्री 
  • पीला कपड़ा सूती

हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-

  • काला तिल 
  • जौ,चावल 
  •  कमलगट्टा, पंचमेवा 
  •  हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
  • गुड़ (बूरा या शक्कर) 
  • बलिदान हेतु पापड़
  • काला उडद 
  • पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
  • प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय – एक सेट
  • हवन कुण्ड ताम्र का 10/10  इंच या 12/12 इंच 
  • कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
  •  पिसा हुआ चन्दन 
  • नवग्रह समिधा
  •  हवन समिधा 
  •  घृत पात्र
  • कुशा
  • पंच पात्र

यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-

  • वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1
  • गाय का दूध – 100ML
  • दही – 50ML
  • मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार 
  • फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
  • दूर्वादल (घास ) – 1मुठ 
  • पान का पत्ता – 11
  • पुष्प विभिन्न प्रकार – 2 kg
  • पुष्पमाला – 7 ( विभिन्न प्रकार का)
  • आम का पल्लव – 2
  • पानी वाला नारियल
  • विल्वपत्र – 21
  • तुलसी पत्र –7
  • तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित  
  • शमी पत्र एवं पुष्प 
  •  थाली – 2, कटोरी – 5, लोटा – 2, चम्मच – आदि 
  • अखण्ड दीपक –1
  • देवताओं के लिए वस्त्र –  गमछाधोती  आदि 
  • बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
  • गोदुग्ध,गोदधि,गोबर 

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