Description
About Puja :-
वैदिक सनातन धर्म की परम्परा में विवाह संस्कार षोडश संस्कारों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह संस्कार वैदिक ऋचाओं में उल्लिखित सोमसूर्या सूक्त से सम्बद्ध है, जिसका वर्णन ऋग्वेद के दशम मण्डल में मिलता है। इस सूक्त के मन्त्रद्रष्टा ऋषिका सावित्री सूर्या हैं। इसमें वर-वधू के दीर्घ जीवन, अखण्ड सौभाग्य और पारिवारिक समृद्धि के लिए प्रार्थना की गई है।
विवाह संस्कार में वधू को सौभाग्यशालिनी और जीवन में कल्याण लाने वाली माना जाता है। इसमें सोम, सूर्य और अश्विनी कुमारों जैसे देवताओं की स्तुति की जाती है। सोमरस, जो कि कल्याणकारी औषधि ‘सोमलता’ से निष्पादित होता है, ब्रह्मवेत्ता और ज्ञानी जनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह देवताओं को बलशाली बनाता है।
ऋग्वेद में सूर्य और चन्द्रमा के प्रतीकात्मक वर्णन से भी विवाह की महत्ता को दर्शाया गया है। सूर्या नामक कन्या का वर अश्विनी कुमारों को माना गया है, जो देवताओं के वैद्य हैं और सभी रोगों का नाश करने में सक्षम हैं।
सूर्य को समस्त भुवनों का दर्शन करने वाला और चन्द्रमा को समय, ऋतु एवं संवत्सर का नियंता बताया गया है। विवाह संस्कार के इस वर्णन में वर-वधू के स्वस्थ, सुखी और समृद्ध जीवन की कामना की गई है।
Benefits
दाम्पत्य जीवन में सामंजस्य: इस सूक्त का पाठ दाम्पत्य जीवन में प्रेम और सामंजस्य को प्रगाढ़ बनाता है, और उनके मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करता है।
- सत्कर्मों की प्रेरणा: यह सूक्त वर और वधू को सत्कर्मों की ओर प्रेरित करता है और उनके जीवन को आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।
- अमंगल का नाश: वर और वधू के समस्त अमंगलों का नाश कर उनके जीवन को कल्याणकारी बनाता है।
- उत्तम संतान प्राप्ति: इस सूक्त का पाठ उत्तम सन्तति (पुत्र-पौत्रादि) प्राप्त करने की शुभ कामना को पूर्ण करता है।
- शत्रुनाशक प्रभाव: विवाह सूक्त शत्रुओं के प्रभाव को समाप्त कर दाम्पत्य जीवन को सुरक्षित रखता है।
- पाणिग्रहण का संकल्प: यह सूक्त वर-वधू को उनके पाणिग्रहण संकल्प की स्मृति दिलाते हुए गृहस्थ धर्म में श्रेष्ठता प्रदान करता है।
- दीर्घायु एवं स्वास्थ्य: पति-पत्नी के दीर्घायु और स्वास्थ्य की कामना का अभिन्न हिस्सा है यह सूक्त।
- पारिवारिक सौहार्द: यह पाठ परिवार में सौहार्द और संतोष का वातावरण बनाता है। वधू को परिवार के सभी सदस्यों को प्रसन्न रखने वाली माना गया है।
- गृहस्थ जीवन की सिद्धि: वर और वधू का गृहस्थ जीवन आनंदमय एवं पुत्र-पौत्रादि के साथ सुखमय बने, इसकी कामना इस सूक्त से होती है।
- पारिवारिक साम्राज्ञी की प्रतिष्ठा: वधू को गृह में साम्राज्ञी के रूप में प्रतिष्ठित होने का आशीर्वाद इस सूक्त द्वारा मिलता है।
- मनोमिलन एवं प्रेम: पति-पत्नी का हृदय और मन एक-दूसरे के प्रति अनुकूल एवं प्रीतिपूर्ण हो, यह पाठ इसका मार्ग प्रशस्त करता है।
- क्लेश का शमन: विधिपूर्वक पाठ और अनुष्ठान से पति-पत्नी के बीच का कलह शांत हो जाता है, और उनका वैवाहिक जीवन मंगलमय हो जाता है।
यह सूक्त पाठ वैवाहिक जीवन को सफल और सुखद बनाने के लिए परम कल्याणकारी है।
Puja Samagri
श्रद्धा द्वारा प्रदान की जाने वाली पूजन सामग्री:
- पूजा सामग्री
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलायची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती, रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज, पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल (छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
- हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी, गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उड़द
- पूर्णपात्र (कटोरी या भगोनी)
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय (एक सेट)
- हवन कुण्ड (ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच)
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:
- वेदी निर्माण हेतु सामग्री
- आवश्यक सामग्री
- गाय का दूध – 100ML
- दही – 50ML
- मिष्ठान्न (आवश्यकतानुसार)
- फल (विभिन्न प्रकार, आवश्यकतानुसार)
- दूर्वादल (घास) – 1 मुठ्ठी
- पान का पत्ता – 07
- पुष्प (विभिन्न प्रकार) – 2 किग्रा
- पुष्पमाला – 7 (विभिन्न प्रकार की)
- आम का पल्लव – 2
- विल्वपत्र – 21
- तुलसी पत्र – 7
- पानी वाला नारियल
- शमी पत्र एवं पुष्प
- पात्र एवं उपकरण
- तांबा या पीतल का कलश (ढक्कन सहित)
- थाली – 2, कटोरी – 5, लोटा – 2, चम्मच – 2
- अखण्ड दीपक – 1
- देवताओं के वस्त्र
- अन्य सामग्री
- बैठने हेतु दरी, चादर, आसन
- गोदुग्ध (गाय का दूध)
- गोदधि (गाय का दही)
यह सामग्री यज्ञ और पूजा की पूर्णता के लिए उपयोगी है और सभी अनुष्ठानों में पवित्रता और श्रद्धा बनाए रखने में सहायक है।
दोष एवं निवारण
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