Description
विवाह संस्कार एक महत्वपूर्ण संस्कार है, जो समावर्तन संस्कार के बाद होता है और हिंदू धर्म के समस्त आश्रमों में गृहस्थ आश्रम में प्रवेश की अनुमति प्रदान करता है। विवाह संस्कार से ही व्यक्ति गृहस्थ धर्म का पालन करने के योग्य होता है। आचार्य मनु के अनुसार, विवाह के उपरांत गृहस्थ धर्म का पालन करना चाहिए। गृहस्थाश्रम समस्त आश्रमों का पोषक है और इसके बिना जीवन में संतुलन और शांति की स्थापना संभव नहीं है।
दक्षस्मृति के अनुसार, गृहस्थाश्रम अन्य सभी आश्रमों का कारण है। जैसे सभी जीव मातृ-संरक्षण में पनपते हैं, वैसे ही सभी धार्मिक एवं सांस्कृतिक धारणाएं गृहस्थ आश्रम से ही पोषित होती हैं। गृहस्थाश्रम का आधार स्त्री होती है, जिसके कारण एक घर वास्तव में गृह बनता है और समाज में इसकी स्थिरता स्थापित होती है।
विवाह संस्कार, वर और वधू के मध्य एक पवित्र संबंध का निर्माण करता है, जो अग्नि और देवताओं के समक्ष संपन्न होता है। बाहरी रूप से यह एक उत्सव दिखता है, परंतु आध्यात्मिक दृष्टि से यह वैदिक मर्यादाओं का प्रतीक है। विवाह का उद्देश्य संतानोत्पत्ति, शील और सद्गुणों का पालन, तथा सभी जीवों की सेवा के माध्यम से आत्म-संतुष्टि और कल्याण की ओर बढ़ना है। इसका मूल उद्देश्य केवल लौकिक संयोग नहीं, बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक जिम्मेदारियों का निर्वहन भी है।
गृहस्थाश्रम में पुरुषार्थ चतुष्टय (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) की स्थापना होती है। विवाह संस्कार के माध्यम से पति-पत्नी को एक-दूसरे के पूरक के रूप में स्वीकारा जाता है और साथ ही उन्हें मर्यादित आचरण का पालन करने की प्रेरणा मिलती है। विवाह संस्कार में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक उन्नति का संचार होता है। इसके माध्यम से परस्पर प्रेम और विश्वास का आधार मजबूत होता है। भारतीय विवाह पद्धति सात जन्मों के बंधन को मान्यता देती है, जिसमें जीवनभर के लिए एक अटूट संबंध की स्थापना होती है।
विवाह संस्कार पति को एक पत्नीव्रत और पत्नी को पातिव्रत धर्म का पालन करने का संकल्प देता है, जिससे उनका प्रेम और विश्वास जीवनभर प्रगाढ़ होता रहता है। विवाह के बाद, दंपति धर्माचरण और यज्ञीय कर्मों को साझा रूप में संपन्न करते हैं, जिससे उनकी गृहस्थ जीवन की यात्रा पूर्णता की ओर अग्रसर होती है।
Benefits
विवाह संस्कार सनातन संस्कृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण है, जिसमें देवताओं और पितृों का आह्वान कर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। विवाह मंडप में मातृकाओं का स्वागत होता है, जिनकी कृपा से वर-वधू का जीवन मंगलमय होता है। विवाह संस्कार में वर विष्णु रूप और कन्या लक्ष्मी रूप होती हैं, अतः उनका पूजन लक्ष्मीनारायण के स्वरूप में किया जाता है।
विवाह संस्कार का एक महत्वपूर्ण अंश कन्यादान है, जिसे महादान माना जाता है। इस प्रक्रिया में कन्यादाता (कन्या का पिता) वरुण स्वरूप समझे जाते हैं, और कन्यादान से उन्हें पुण्य की प्राप्ति होती है। कन्यादान के पश्चात, वर-वधू अग्निदेव की प्रदक्षिणा करते हुए एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं और होम कर्म करते हैं, जिसमें वैदिक मंत्रों से आहुति दी जाती है और नवजीवन में सुख, समृद्धि, और धर्म की कामना की जाती है।
वर-वधू का एक-दूसरे का अंगूठा ग्रहण करना, जीवनभर परस्पर सहयोग और विश्वास का प्रतीक होता है। लाजाहोम में वधू अपने पति के दीर्घायु और पितृकुल की समृद्धि की कामना करती है। अश्मारोहण की विधि में पति पत्नी के अविचल सौभाग्य की याचना करता है, और अग्नि परिक्रमा से एक-दूसरे के प्रति आशीर्वाद की भावना प्रगाढ़ होती है।
सप्तपदी की प्रक्रिया में दोनों एक-दूसरे के प्रति दृढ़ प्रीति और सखा भाव का संकल्प लेते हैं। ध्रुव और अरुंधती का दर्शन कर इस पवित्र बंधन की स्थायित्व की भावना को बल मिलता है। विवाह संस्कार पूरी तरह वैदिक मंत्रों से संपन्न होता है, जिससे वर-वधू का जीवन मंगलमय और धार्मिक नियमों का अनुसरण करते हुए उन्नत होता है।
विवाह के दौरान मंत्रों का उदात्त भाव दोनों के मन, विचार और हृदय को एकजुट करता है। पाणिग्रहण के समय वर और वधू का मिलन जीवनभर के लिए एक अटूट बंधन का प्रतीक बनता है। कन्यादान में पिता का यह भाव होता है कि वह लक्ष्मी रूपा कन्या को विष्णु रूप वर को सौंप रहा है, ताकि दोनों का दांपत्य जीवन सौम्यता और समृद्धि से परिपूर्ण हो।
लाजाहोम के मंत्रों में वधू अपने पति की समृद्धि और दोनों के बीच प्रगाढ़ प्रेम की कामना करती है। पाणिग्रहण मंत्रों में वर वधू को एक-दूसरे का हाथ पकड़कर दीर्घायु, संतोष और संतान प्राप्ति की कामना करते हैं। सप्तपदी और अन्य वैदिक विधियों में दोनों का बंधन और दृढ़ होता है और जीवन की हर परीक्षा में एक-दूसरे का साथ निभाने का संकल्प लिया जाता है।
इस प्रकार, SHRADDHA का विवाह संस्कार न केवल वर-वधू के लिए अखंड सौभाग्य और धर्मयुक्त जीवन का आधार बनता है, बल्कि उनके आपसी प्रेम, स्थायित्व और सामाजिक कर्तव्यों की पूर्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
Puja Samagri
SHRADDHA द्वारा विवाह संस्कार के लिए प्रदान की जाने वाली पूजन सामग्री
पूजन सामग्री:
- कलावा, रोली
- सिन्दूर, सुपारी
- लवङ्ग, इलाइची
- अबीर, हल्दी
- अभ्रक, गुलाल
- गुलाबजल, गङ्गाजल
- शहद, इत्र
- रुईबत्ती, रुई
- धूपबत्ती, पीली सरसों
- यज्ञोपवीत, कपूर
- देशी घी, माचिस
- दोना बड़ा साइज, पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- चावल (छोटा वाला), दीपक (मिट्टी का)
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा (सूती)
- अष्टगन्ध चन्दन
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र:
- काला तिल, चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, गुग्गुल
- देशी घी, गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र (कटोरी या भगोनी)
- प्रोक्षणी, प्रणीता, सुवा, शुचि, स्फय – एक सेट
- हवन कुण्ड (ताम्र का, 10/10 इंच या 12/12 इंच)
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा, घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:
- वेदी निर्माण हेतु चौकी (2/2 का) – 1
- गाय का दूध – 100 ML
- दही – 50 ML
- मिष्ठान्न (आवश्यकतानुसार)
- विभिन्न प्रकार के फल
- दूर्वादल (घास) – 1 मुठ
- पान के पत्ते – 6
- विभिन्न प्रकार के पुष्प – 2 kg
- पुष्पमाला – 7 (विविध प्रकार की)
- आम के पल्लव – 2
- विल्वपत्र – 21
- तुलसी पत्र – 7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- पानी वाला नारियल
- थाली – 2, कटोरी – 5, लोटा – 2, चम्मच – 2
- अखण्ड दीपक – 1
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- देवताओं के लिए वस्त्र – (गमछा, धोती आदि)
- बैठने हेतु दरी, चादर, आसन
- गोदुग्ध, गोदधि
SHRADDHA के साथ अपने विशेष विवाह संस्कार को मंगलमय बनाएं!
Reviews
There are no reviews yet.