Description
About Puja :-
भारतीय ऋषियों ने अपने तप और साधना द्वारा न केवल आध्यात्मिक सिद्धान्तों की खोज की, बल्कि उन्होंने आकाशीय ग्रहों और उनके प्रभाव का गहराई से अध्ययन भी किया। उनके द्वारा प्राप्त ज्ञान केवल प्राचीन नहीं, बल्कि आज भी प्रासंगिक है। यह ज्ञान ब्रह्मांड के स्वभाव और ग्रहों के प्रभाव पर आधारित है, जो जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करते हैं।
हमारे शास्त्रों के अनुसार, प्रत्येक मानव जीवन में आने वाली घटनाएँ, सुख, दुःख, जीवन और मृत्यु सभी ग्रहों के प्रभाव से निर्धारित होती हैं। ग्रहों के चालन और स्थिति के आधार पर, काल का प्रवाह भी तय होता है। पुराणों में इसे इस प्रकार वर्णित किया गया है कि संसार का प्रत्येक परिवर्तन ग्रहों के अधीन है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में सूर्य को अत्यधिक महत्व दिया गया है। सूर्य देवता को जगत के प्रकाश और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है।
सूर्य को आदित्य, भास्कर, सविता आदि नामों से भी जाना जाता है, और इनकी पूजा से जीवन में सकारात्मक बदलाव आता है। यजुर्वेद में सूर्य को समस्त विश्व की आत्मा के रूप में वर्णित किया गया है। सूर्य के बिना, जीवन के अस्तित्व की कल्पना भी असंभव है। यही कारण है कि उन्हें सृष्टि का पालनकर्ता और जीवनदाता माना गया है।
सूर्य देवता की उपासना से न केवल जीवन में बल और ऊर्जा का संचार होता है, बल्कि यह शरीर और आत्मा को भी शुद्ध करता है। सूर्य का एक प्रमुख गुण उनका तेजस्विता और अडिगता है, जो हमारे जीवन को सकारात्मक दिशा में मार्गदर्शन करता है।
भगवान सूर्य का रंग लाल है, और वह कमल के फूल पर विराजमान रहते हैं। उनके पास चक्र, शक्ति, पाश, और अंकुश जैसे दिव्य अस्त्र होते हैं। उनके रथ में सात घोड़े होते हैं, जो उनके तेज और शक्ति का प्रतीक हैं। सूर्य देवता का प्रभाव विशेष रूप से मेष, सिंह, और कन्या राशि में प्रमुख होता है।
इस प्रकार, सूर्य की पूजा न केवल भौतिक बल्कि आध्यात्मिक लाभ भी प्रदान करती है, और यह सभी ग्रहों के प्रभाव को संतुलित करने का एक उत्कृष्ट उपाय है।
Benefits
सूर्य मंत्र जप का महत्व और लाभ:
प्राचीन समय में महाकवि मयूख को सूर्य ग्रहण के कारण कुष्ठरोग हो गया था। इस रोग से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने सूर्योपासना की और सूर्यशतकम् नामक ग्रंथ लिखा, जिसके बाद भगवान सूर्य की कृपा से उनका स्वास्थ्य पूरी तरह ठीक हो गया। यह उदाहरण हमें यह सिखाता है कि सूर्य की पूजा और मंत्र जप से न केवल रोगों से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन में सकारात्मक बदलाव भी आते हैं।
सूर्य मंत्र जप से विशेष रूप से शरीर के विभिन्न रोगों का इलाज होता है। विशेषकर पित्त संबंधी रोग, ज्वर, त्वचा रोग, मानसिक विकार, हृदय रोग, नेत्र दोष, और मिर्गी जैसी समस्याओं में सूर्योपासना का अनूठा प्रभाव देखने को मिलता है। वैदिक शास्त्रों के अनुसार, सूर्य की उपासना करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और रोगों का शमन होता है।
“आरोग्यं भास्करादिच्छेत्”—इस शास्त्र वाक्य का अर्थ है कि सूर्य की पूजा से शरीर को आरोग्य और शक्ति मिलती है। यदि किसी व्यक्ति के जीवन में शारीरिक या मानसिक कमजोरी है, तो सूर्य पूजा से वह शक्ति और आत्मविश्वास प्राप्त कर सकता है। सूर्य ग्रह की कुंडली में नकारात्मक स्थिति होने पर, सूर्य मंत्र का जाप और पूजा अनिवार्य रूप से फायदेमंद होती है।
इसके अलावा, सूर्य की पूजा से व्यापार और आर्थिक समस्याओं का समाधान भी हो सकता है, विशेष रूप से जब सूर्य कुंडली में नीच स्थान पर हो। सूर्य को ज्ञान और बुद्धि का देवता माना जाता है, और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से व्यक्ति को जीवन में सफलता मिलती है। असफलताओं से जूझ रहे व्यक्तियों के लिए सूर्य उपासना अत्यंत प्रभावकारी सिद्ध होती है।
सूर्य ग्रह की अनुकूलता के लिए माणिक्य रत्न पहनना भी शुभ माना जाता है। इसके साथ ही, सूर्य शांति के लिए शास्त्रोक्त विधियों से पूजा और दान का आयोजन करना आवश्यक होता है। इस पूजा में गेहूं, गुड़, लाल चंदन, सोना, तांबा, आदि वस्तुओं का दान शामिल है, जो सूर्य ग्रह के सकारात्मक प्रभाव को बढ़ाता है।
सूर्य मंत्र जप की संख्या शास्त्रों में 7000 बताई गई है, जिसे नियमपूर्वक किया जाना चाहिए। मंत्र जप या अनुष्ठान से पहले, किसी विशेषज्ञ से कुंडली की सलाह लेना उचित होता है, ताकि ग्रहों की स्थिति के आधार पर पूजा सही तरीके से की जा सके।
Process
सूर्यग्रह के मन्त्रजप में होने वाले प्रयोग या विधि :-
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- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवंपूजन
- रक्षाविधान, प्रधान देवता पूजन
- मन्त्रजप विधान
- विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
- ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुतिस्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राश, मार्जन, पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri
श्रद्धा के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
- पंचगव्य गोघृत, गोमूत्र
- हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- जौ,चावल
- कमलगट्टा, पंचमेवा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर) ,गड़ी गोला
- पान पत्ता, बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय – एक सेट
हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1
- गाय का दूध – 100ML
- दही – 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) – 1मुठ
- पान का पत्ता – 11
- पुष्प विभिन्न प्रकार – 2 kg
- पुष्पमाला – 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव – 2
- विल्वपत्र – 21
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- तुलसी पत्र –7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली – 2, कटोरी – 5, लोटा – 2, चम्मच – 2 आदि
- अखण्ड दीपक –1
- पानी वाला नारियल,
- देवताओं के लिए वस्त्र – गमछा, धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि,गोबर
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