Description
About Puja :-
भगवान् विष्णु के स्तोत्र का महत्व
यह स्तोत्र भगवान् विष्णु की उपासना और आराधना के लिए रचा गया है। भगवान् विष्णु की पूजा का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में उल्लेखित यह स्तोत्र अपार महिमा वाला है।
महाभारत के शांति पर्व में वर्णित है कि एक बार राजा शिबि ने अपने राज्य में समृद्धि और शांति के लिए एक विशेष यज्ञ की योजना बनाई। यज्ञ आरंभ करने से पूर्व उन्होंने अपने आचार्य से उचित मार्गदर्शन मांगा। आचार्य ने राजा शिबि को बताया कि यज्ञ से पहले भगवान् विष्णु की आराधना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि वे समस्त विश्व के पालनकर्ता और समस्त पापों के विनाशक हैं।
भगवान् विष्णु की महिमा इस प्रकार वर्णित है:
“सर्वं विष्णुमयं जगत्”
अर्थात यह समस्त संसार भगवान् विष्णु का ही स्वरूप है। तिथि, वार, नक्षत्र, योग, और करण सभी में भगवान् विष्णु का वास है।
अपामार्जन स्तोत्र, जो विष्णु धर्मोत्तर पुराण में वर्णित है, भगवान् विष्णु की कृपा प्राप्त करने का एक अद्भुत साधन है। इस स्तोत्र का पाठ व्यक्ति के समस्त दोषों और पापों का शमन करता है तथा उसे शांति और समृद्धि प्रदान करता है।
भगवान् विष्णु की पूजा का फल
उनकी आराधना से भक्त को सांसारिक कष्टों से मुक्ति, आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि युगों-युगों से संतों, ऋषियों और राजाओं ने भगवान् विष्णु की उपासना में इस स्तोत्र का विधिपूर्वक प्रयोग किया है।
Benefits
अपामार्जन स्तोत्र पाठ का महत्व
भगवान् विष्णु की शक्ति से युक्त अपामार्जन स्तोत्र का श्रद्धा और विश्वासपूर्वक पाठ करने से विभिन्न प्रकार के रोग, कष्ट और पापों का निवारण होता है।
- रोगों का समाधान:
यह स्तोत्र शरीर और मन से जुड़ी असाध्य बीमारियों को समाप्त करने में अद्भुत प्रभावशाली है। नेत्र, शिर, उदर, नासिका, और पाद से संबंधित रोगों के साथ-साथ वात, पित्त, कफ विकार, कुष्ठ, क्षय, भगंदर, और अन्य असाध्य रोगों का नाश होता है।
- आध्यात्मिक सुरक्षा:
अपामार्जन स्तोत्र पाठ से साधक को भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शत्रुओं की पीड़ा, और ग्रह दोष से मुक्ति मिलती है। यह पाठ व्यक्ति को भय, शोक, और दुःख से भी उबारता है।
- संपूर्ण शुद्धि:
यह स्तोत्र न केवल रोगों का निवारण करता है, बल्कि साधक के शरीर, मन और आत्मा को पवित्र और शुद्ध करता है, जिससे उसे आध्यात्मिक उन्नति और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
- सर्वांगीण कल्याण:
अपामार्जन स्तोत्र के नियमित पाठ से विषाक्तता, श्वास की कठिनाई, कम्पन, पथरी, और अन्य शारीरिक असुविधाओं का नाश होता है। साथ ही, ग्रहपीड़ा और शत्रुओं के बंधन समाप्त होते हैं।
विशेष:
अपामार्जन स्तोत्र केवल रोगनाशक ही नहीं, बल्कि जीवन में समृद्धि, सुख और संतोष का संचार करने वाला एक अत्यंत प्रभावी साधन है। इस स्तोत्र का पाठ व्यक्ति के जीवन को सभी प्रकार के बंधनों और कष्टों से मुक्त करता है।
Process
अपामार्जन स्तोत्र में होने वाले प्रयोग या विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवंपूजन
- रक्षाविधान, प्रधान देवता पूजन
- पाठ विधान
- विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
- ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुतिस्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राश, मार्जन, पूर्णपात्रदान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri
श्रद्धा के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय – एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1
- गाय का दूध – 100ML
- दही – 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) – 1मुठ
- पान का पत्ता – 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार – 2 kg
- पुष्पमाला – 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव – 2
- विल्वपत्र – 21
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- तुलसी पत्र –7
- पानी वाला नारियल
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली – 2, कटोरी – 5, लोटा – 2, चम्मच – 2 आदि
- अखण्ड दीपक –1
- देवताओं के लिए वस्त्र – गमछा, धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि
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