Description
About Puja :-
अभिलाष्टक स्तोत्र का पौराणिक प्रसंग:
अभिलाष्टक स्तोत्र एक दिव्य स्तुति है, जो सम्पूर्ण मनोकामनाओं की पूर्ति करने के साथ-साथ विशेष रूप से पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा रखने वालों के लिए अत्यंत फलदायी है।
प्राचीन काल में शाण्डिल्य गोत्र के महान ऋषि, व्रत, तप और ज्ञान से परिपूर्ण विश्वानर मुनि रेवा (नर्मदा) के तट पर तपस्या में लीन रहते थे। उनकी पत्नी, शुचिष्मती, धर्मपरायण, पतिव्रता और उच्च चरित्र की धनी थीं। यद्यपि दंपति गृहस्थ जीवन का पालन कर रहे थे, उन्हें सन्तान सुख प्राप्त नहीं हुआ।
एक दिन शुचिष्मती ने अपने पति से अपनी एकमात्र अभिलाषा व्यक्त की, “हे स्वामिन्! आपके साथ रहते हुए मैंने स्त्री जीवन के सभी सुखों को प्राप्त किया है, परंतु मेरा हृदय एक पुत्र की लालसा रखता है। यदि आप मुझे वरदान देना चाहें, तो मुझे शिव सदृश पुत्र प्रदान करें।”
पत्नी की प्रार्थना सुनकर ऋषि विश्वानर काशीधाम गए और वहां भगवान वीरेश्वर महादेव की आराधना करने लगे। उनकी कठोर तपस्या और अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अष्टवर्षीय बालक के रूप में उन्हें दर्शन दिया। इस दिव्य दर्शन से प्रेरित होकर ऋषि ने आठ श्लोकों में भगवान शिव का स्तवन किया, जिसे बाद में “अभिलाष्टक स्तोत्र” के नाम से जाना गया।
भगवान शिव ने प्रसन्न होकर वरदान दिया, “हे मुनिश्रेष्ठ! मैं स्वयं तुम्हारे पुत्र रूप में शुचिष्मती के गर्भ से प्रकट होउंगा।” इस वरदान से धन्य होकर ऋषि अपने आश्रम लौट आए। समयानुसार, शिवकृपा से शुचिष्मती ने एक तेजस्वी और दिव्य पुत्र को जन्म दिया।
अभिलाष्टक स्तोत्र न केवल पुत्र प्राप्ति के लिए, बल्कि समस्त इच्छाओं की पूर्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक अमोघ उपाय माना गया है।
Benefits
अभिलाष्टक स्तोत्र के पाठ का महत्व:
भगवान शिव ने स्वयं कहा है कि जो कोई श्रद्धापूर्वक अभिलाष्टक स्तोत्र का पाठ करेगा या करवाएगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।
इस स्तोत्र के नियमित पाठ से व्यक्ति को धन, संपत्ति, पुत्र-पौत्र, और कुलवृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
अभिलाष्टक स्तोत्र विपत्तियों को समाप्त करने वाला, शांति प्रदान करने वाला, और सांसारिक एवं आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति का माध्यम है।
विशेषकर, इस स्तोत्र का पाठ विद्वान ब्राह्मणों द्वारा विधिवत रूप से कराया जाता है, जिसमें भगवान शिव की पूजन के बाद स्तोत्र का पाठ पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा से किया जाता है।
यह पाठ शिवभक्तों को उनके जीवन में स्थिरता, समृद्धि और संतोष प्रदान करने का अद्वितीय साधन है।
Process
अभिलाष्टक स्तोत्र पाठ में होने वाले प्रयोग या विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं पूजन
- रक्षाविधान, प्रधान देवता पूजन
- पाठ विधान
- विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
- ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुति स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राश , मार्जन, पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri
श्रद्धा के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय – एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1
- गाय का दूध – 100ML
- दही – 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) – 1मुठ
- पान का पत्ता – 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार – 2 kg
- पुष्पमाला – 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव – 2
- विल्वपत्र – 21
- तुलसी पत्र –7
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- पानी वाला नारियल
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली – 2 , कटोरी – 5 ,लोटा – 2 , चम्मच – 2 आदि
- अखण्ड दीपक –1
- देवताओं के लिए वस्त्र – गमछा , धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि
Reviews
There are no reviews yet.