Description
About Puja :-
भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु एक छायाग्रह है, जिसे वायव्य कोण में स्थान प्राप्त है। यह ग्रह ग्रहों के बीच एक विशेष महत्व रखता है और इसके प्रभाव के कारण जीवन में विभिन्न उतार-चढ़ाव आते हैं। केतु को लेकर कई पुराणों में कथाएँ वर्णित हैं, जिसमें कहा गया है कि यह राहु के साथ जुड़ा हुआ है और दोनों मिलकर एक साथ कार्य करते हैं। केतु की दो भुजाएँ होती हैं और यह अपने सिर पर मुकुट और काले वस्त्र पहनता है। इसका वाहन गीध है और इसका स्वभाव भी थोड़ा रहस्यमय होता है।
केतु का प्रभाव
केतु ग्रह का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिकता, विघ्न और अचानक बदलाव लाने वाला होता है। ज्योतिष के अनुसार, केतु राहु से थोड़ा सौम्य और व्यक्ति के लिए शुभकारी माना जाता है। यह ग्रह व्यक्तित्व के हर पहलू को प्रभावित करता है, लेकिन यह प्रमुख रूप से व्यक्ति की मानसिकता, आस्थाएँ और जीवन में अवरोधों का कारक होता है।
जप विधि और शान्ति
केतु ग्रह की महादशा सात वर्षों की होती है, और इसका शान्ति अनुष्ठान विशेष रूप से जरूरी होता है। शास्त्रों के अनुसार, केतु की महादशा के दौरान 17,000 बार जप करने का विधान है। लेकिन आज के समय में यह संख्या बढ़ाकर चार गुना की जाती है, जिससे व्यक्ति के जीवन से केतु के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, केतु की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए लहसुनिया रत्न पहनने की सलाह दी जाती है।
केतु के शान्ति हेतु दान
केतु की प्रसन्नता के लिए कुछ विशिष्ट दान की वस्तुएं हैं, जिनका उल्लेख पुराणों में मिलता है। जैसे, वैदूर्य रत्न, तिल, तेल, कम्बल, शस्त्र, नीला फूल, काला छाता, मसूर की दाल, और लोहे के बर्तन दान करने से केतु के प्रभाव को शान्त किया जा सकता है।
केतु के प्रतिकूल प्रभाव के लक्षण
जब केतु ग्रह प्रतिकूल स्थिति में होता है, तो इसके दुष्प्रभाव के रूप में व्यक्ति के जीवन में अचानक बड़े बदलाव आ सकते हैं। जैसे:
- नौकरी में बदलाव: नौकरी का छूटना या लंबी अवधि तक नई नौकरी न मिल पाना।
- व्यक्तिगत रिश्तों में विघ्न: परिवार और दोस्तों के साथ विवाद और संबंधों में तनाव।
- स्वास्थ्य समस्याएँ: चर्मरोग, घुटनों में दर्द, मांसपेशियों में दर्द, बहरापन जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- स्वभाव में परिवर्तन: केतु के प्रतिकूल प्रभाव से स्वभाव कठोर हो जाता है, और छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आ सकता है।
- दुर्घटनाएँ और ऑपरेशन: दुर्घटनाओं के दौरान केतु के प्रभाव से ऑपरेशन की संभावना बढ़ जाती है, और इस कारण त्वचा पर चीर-फाड़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
निवारण और उपाय
केतु के प्रभाव को संतुलित करने के लिए शांति पाठ, मंत्र जप, और दान करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं। इसके अतिरिक्त, केतु की महादशा में विशेषज्ञ की सलाह लेकर उचित उपायों को अपनाना चाहिए, ताकि इसके दुष्प्रभावों से बचा जा सके और जीवन में सफलता प्राप्त हो सके।
Benefits
केतु ग्रह का महत्व:
केतु को सामान्यतः एक अशुभ ग्रह माना जाता है, लेकिन यदि यह ग्रह शुभ स्थिति में होता है, तो यह जातक के लिए अत्यधिक लाभकारी और मंगलकारी सिद्ध हो सकता है।
- शुभ स्थिति में केतु: यदि केतु शुभ ग्रहों से युक्त होता है, तो यह आध्यात्मिक उन्नति, मुक्ति और भौतिक इच्छाओं से वैराग्य को बढ़ावा देता है। ऐसे जातक को आत्मिक शांति का अनुभव होता है और उनका जीवन अत्यधिक संतुलित और सुखमय होता है।
- अशुभ स्थिति में केतु: यदि कुण्डली में केतु अशुभ स्थिति में हो, तो इसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए शान्ति अनुष्ठान कराना अत्यंत आवश्यक होता है। शान्ति अनुष्ठान करने से सांसारिक गतिविधियों में अरुचि उत्पन्न होती है और आध्यात्मिक गतिविधियों की ओर रुझान बढ़ता है।
- आध्यात्मिक लाभ: केतु का शुभ प्रभाव व्यक्ति में आत्मज्ञान और ध्यान की ओर प्रवृत्त करता है, जिससे व्यक्ति भौतिक सुखों से वैराग्य प्राप्त करता है और अध्यात्म में रुचि बढ़ती है।
- विशेष जप विधि: यदि केतु के शान्ति अनुष्ठान में वैदिक ब्राह्मणों द्वारा विधिवत जप कराया जाए, तो यह व्यक्ति के मन, शरीर और आत्मा में गहरी शांति का अनुभव कराता है। इस अनुष्ठान से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होते हैं और उसकी मानसिक स्थिति में सुधार आता है।
उपाय और सलाह:
केतु के प्रभाव को संतुलित करने के लिए शान्ति अनुष्ठान और मंत्र जप बेहद प्रभावी होते हैं। लेकिन इससे पहले किसी कुंडली विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लेनी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सही उपाय अपनाए जा रहे हैं।
Process
केतु ग्रह में होने वाले प्रयोग या विधि:-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवंपूजन
- रक्षाविधान, प्रधान देवता पूजन
- मन्त्रजप विधान
- विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
- ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुतिस्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राश, मार्जन, पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri
श्रद्धा के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय – एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- कलश रखने के लिए मिट्टी का पात्र
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1
- गाय का दूध – 100ML
- दही – 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) – 1मुठ
- पान का पत्ता – 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार – 2 kg
- पुष्पमाला – 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव – 2
- विल्वपत्र – 21
- पानी वाला नारियल,
- तुलसी पत्र –7
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- शमी पत्र एवं पुष्प
- थाली – 2, कटोरी – 5, लोटा – 2, चम्मच – 2 आदि
- अखण्ड दीपक –1
- देवताओं के लिए वस्त्र – गमछा, धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि
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