Description
About Puja :-
माता लक्ष्मी हिन्दू धर्म में धन, समृद्धि, और ऐश्वर्य की देवी मानी जाती हैं। वह भगवान विष्णु की पत्नी और समस्त सृष्टि की पालनहार हैं। माता लक्ष्मी की पूजा से न केवल धन की प्राप्ति होती है, बल्कि स्वास्थ्य, सुख-शांति, और समृद्धि का भी वास होता है। उनकी उपासना से घर में सुख-समृद्धि का वातावरण बनता है, और जीवन में शांति तथा संतुलन स्थापित होता है।
माता लक्ष्मी के कई रूप हैं, जिनमें से अष्टलक्ष्मी (आठ प्रमुख रूप) का विशेष महत्व है। इन आठ रूपों की पूजा से जीवन में हर प्रकार के भौतिक और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं।
माता लक्ष्मी के आठ रूप
- आदि लक्ष्मी
यह माता लक्ष्मी का मूल रूप है, जो जीवन और सृष्टि के पालन का कार्य करती हैं। इनकी उपासना से जीवन में प्रगति और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। मन्त्र: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं आद्यलक्ष्म्यै नमः”
- विद्या लक्ष्मी
यह रूप विद्या और ज्ञान की देवी के रूप में पूजित हैं। इनकी आराधना से शिक्षा और ज्ञान में प्रगति होती है। मन्त्र: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं विद्यालक्ष्म्यै नमः”
- सौभाग्य लक्ष्मी
यह रूप विशेष रूप से भाग्य के साथ जुड़ा हुआ है, और इस रूप की पूजा से सुख, समृद्धि और पारिवारिक सौहार्द में वृद्धि होती है। मन्त्र: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः”
- अमृत लक्ष्मी
इस रूप की उपासना से जीवन में समृद्धि के साथ-साथ दीर्घायु की प्राप्ति होती है। मन्त्र: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं अमृतलक्ष्म्यै नमः”
- कमल लक्ष्मी
यह रूप इन्द्रियों पर विजय पाने और ज्ञान के मार्ग पर अग्रसर होने की शक्ति प्रदान करता है। मन्त्र: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं कमलालक्ष्म्यै नमः”
- सत्य लक्ष्मी
सत्य की देवी के रूप में पूजित इस स्वरूप की पूजा से जीवन में सत्य का पालन और भटकाव से मुक्ति मिलती है। मन्त्र: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सत्यलक्ष्म्यै नमः”
- भोग लक्ष्मी
यह रूप भौतिक सुखों और ऐश्वर्य की देवी के रूप में पूजा जाती है। इनकी पूजा से जीवन में भौतिक समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। मन्त्र: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं भोगलक्ष्म्यै नमः”
- योग लक्ष्मी
इस स्वरूप की उपासना से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है और व्यक्ति को मानसिक शांति और संतुलन मिलते हैं। मन्त्र: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं योगलक्ष्म्यै नमः”
इन आठ रूपों की पूजा से न केवल धन की प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन के सभी क्षेत्र में सुख, समृद्धि, और ऐश्वर्य का आगमन होता है। साथ ही, अच्छे स्वास्थ्य, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
Benefits
श्रीअष्टलक्ष्मी मन्त्रजप (अनुष्ठान) का महत्व:
माता लक्ष्मी के इन आठ रूपों की पूजा करने से जीवन में धन, ऐश्वर्य, और समृद्धि के रास्ते खुलते हैं। यह पूजा विशेष रूप से व्यापार, नौकरी, और आर्थिक समृद्धि के लिए अत्यंत लाभकारी होती है।
- इनकी उपासना से धन सम्बन्धी सभी समस्याओं का समाधान होता है, और व्यवसाय में तेजी से प्रगति होती है।
- घर परिवार में शांति, सुख, और समृद्धि का वातावरण बनता है, जिससे सभी सदस्य मानसिक शांति का अनुभव करते हैं।
- माता लक्ष्मी के इन रूपों की पूजा करने से शिक्षा और ज्ञान में रुकावटें दूर होती हैं, और व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है।
- कार्यक्षेत्र में सफलता और उन्नति के नए अवसर प्राप्त होते हैं, जिससे व्यक्ति को अपने करियर में लाभ मिलता है।
- यह पूजा व्यक्ति को मानसिक संतुलन और भौतिक सुखों की प्राप्ति में सहायता करती है।
- इसके प्रभाव से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, और नकारात्मक प्रभाव समाप्त हो जाते हैं।
इस प्रकार, श्रीअष्टलक्ष्मी मन्त्रजप से जीवन में समृद्धि, सफलता और शांति की प्राप्ति होती है।
Process
श्रीअष्टलक्ष्मी मन्त्रजप (अनुष्ठान) में होने वाले प्रयोग या विधि:-
-
- स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
- प्रतिज्ञा-सङ्कल्प
- गणपति गौरी पूजन
- कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
- पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
- षोडशमातृका पूजन
- सप्तघृतमातृका पूजन
- आयुष्यमन्त्रपाठ
- सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
- नवग्रह मण्डल पूजन
- अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
- पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवंपूजन
- रक्षाविधान, प्रधान देवता पूजन
- पाठ विधान
- विनियोग,करन्यास, हृदयादिन्यास
- ध्यानम्, स्तोत्र पाठ
- पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
- आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
- घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
- भूरादि नौ आहुतिस्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
- संस्रवप्राश, मार्जन, पूर्णपात्र दान
- प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
- पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन
Puja Samagri
श्रद्धा के द्वारा दी जाने वाली पूजन सामग्री:-
- रोली, कलावा
- सिन्दूर, लवङ्ग
- इलाइची, सुपारी
- हल्दी, अबीर
- गुलाल, अभ्रक
- गङ्गाजल, गुलाबजल
- इत्र, शहद
- धूपबत्ती,रुईबत्ती, रुई
- यज्ञोपवीत, पीला सरसों
- देशी घी, कपूर
- माचिस, जौ
- दोना बड़ा साइज,पञ्चमेवा
- सफेद चन्दन, लाल चन्दन
- अष्टगन्ध चन्दन, गरी गोला
- चावल(छोटा वाला), दीपक मिट्टी का
- सप्तमृत्तिका
- सप्तधान्य, सर्वोषधि
- पञ्चरत्न, मिश्री
- पीला कपड़ा सूती
हवन सामग्री एवं यज्ञपात्र :-
- काला तिल
- चावल
- कमलगट्टा
- हवन सामग्री, घी,गुग्गुल
- गुड़ (बूरा या शक्कर)
- बलिदान हेतु पापड़
- काला उडद
- पूर्णपात्र -कटोरी या भगोनी
- प्रोक्षणी, प्रणीता, स्रुवा, शुचि, स्फय – एक सेट
- हवन कुण्ड ताम्र का 10/10 इंच या 12/12 इंच
- पिसा हुआ चन्दन
- नवग्रह समिधा
- हवन समिधा
- घृत पात्र
- कुशा
- पंच पात्र
यजमान के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था:-
- वेदी निर्माण के लिए चौकी 2/2 का – 1
- गाय का दूध – 100ML
- दही – 50ML
- मिष्ठान्न आवश्यकतानुसार
- फल विभिन्न प्रकार ( आवश्यकतानुसार )
- दूर्वादल (घास ) – 1मुठ
- पान का पत्ता – 07
- पुष्प विभिन्न प्रकार – 2 kg
- पुष्पमाला – 7 ( विभिन्न प्रकार का)
- आम का पल्लव – 2
- विल्वपत्र – 21
- तुलसी पत्र –7
- शमी पत्र एवं पुष्प
- पानी वाला नारिय
- थाली – 2 , कटोरी – 5 ,लोटा – 2 , चम्मच – 2 आदि
- अखण्ड दीपक –1
- तांबा या पीतल का कलश ढक्कन सहित
- देवताओं के लिए वस्त्र – गमछा , धोती आदि
- बैठने हेतु दरी,चादर,आसन
- गोदुग्ध,गोदधि
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